खुदा- ए- अक्स है वो असएस
जो पो-शिदा हर नस्ल मैं है
मंदिर, मस्जिद, गुरू-द्वारेय
हाज़िर्र हर्र जिस्म मैं हैं
यह दर्द-दे दिल
यह घाम- घुफ्फार
बदोलत 'मैं' के कोह्रें हैं
ज़हनी हिसाभ शक्को- शुब्भा
रूहानी इब्बादत के कांटें हैं
खुद- ए- अक्स है वोह असास..
हो मरर- मिटे जिनके लिए
यह कौन शख्स माहिर है
जो रूहानी ही ना हुए
वोह किस मंज़र के साहिर हैं
खुद- ए- अक्स है वोह असास..
जो इस लम्हे रगों मैं तेरी
महसूस कर्रा दे जन्नत को
बुलंद तारक तभी पा कर
पहचानेगा कौन पीर है
खुद- ए- अक्स है वोह असास..
Tuesday, September 25
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